फूलों का हो रहा हवन

अनुक्रमणिका
स्थिति अब जैसी बन रही है
व्यावहारिक चेतनाएँ
मैं और आप
कृपापात्र
गुणी हैं वो
पथ का आनंद
जिंदगी का मेला
मूर्छा से चेतना तक
स्वाँग और छलाँग
कर्म और धर्म
खतरनाक मोड़
बरस जाओ
धर्म बनाम धार्मिकता
मानते मुझे पागल
व्यस्त जनों !
प्रौढ़ प्रणय

सुखदुख की पताकाएँ
पराया और अपना
सरल सूत्र
बड़ा सुख
कहाँ सुखी !
सुखों से घिरकर
निर्भय घर
सुखों की समझदारी

राजनीति प्रेरित रचनाएँ
लोकतंत्र की वसीयत
दर्पण पर दागों का ताला
लोकतंत्र की चीरफाड़ से पलट न जाए पासा
रूसीसाम्यवाद का प्रस्थान
राजनीति का दुर्भाग्य
पहले सत्ता फिर सिद्धांत
छोटेबड़े राष्ट्र
यह संभव है
सम्राट के कान
वर्तमान सत्ताधारियों !
सेवा बिन सेवा नहीं
आधुनिक रेखाएँ
ऐसा क्यों
देख लो
जय बोलो
पहुँचना कहाँ
विज्ञान अजब धातु है
भूमंडलीकरण
पहाड़ दौड़ेंगे !
लूटते हो
क्या झुकोगे नहीं !
कुरसी का मदरसा
जापान की जय
कुरसी का डर
शुभकामनापूर्ण स्वागत
दार्शानिक दिशाएॅ
साधन में तुम साधु जगे हो
दो हाथ
सवालो आओ
विडम्बना
शांत मन
ये काफिले कभी सैलाब में बदलेंगे
उन्हें ढूँढ़ो
कितने किए खड़े
दिव्य भार्या
कौन क्या चाहता
संस्कृति दो परिधानों में
प्रतीक
सच्चाई का स्वाँग
तप की रेखा
समस्या खड़ी
बड़ा है मौन
नियम बनाम भावुकता
मौत
अंतिम सत्य
अद्वितीय दम्पति
स्वर्गलोक से